मुद्रा स्फीति ( inflation ), मुद्रा स्फीति का कारण

मुद्रास्फीति के कारण और परिणाम, Inflation मुद्रा स्फीति क्या है, मुद्रा स्फीति के प्रभाव, मुद्रास्फीति नियंत्रण हेतु उपाय आदि प्रश्नों के उत्तर यहाँ दिए गए हैं। मुद्रा स्फीति का कारण नोट्स इन हिंदी ( Reasons for Inflation Notes in Hindi )

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मुद्रा स्फीति ( inflation ) क्या होता है

किसी भी देश में जब मांग एवं आपूर्ति में असंतुलन की स्थिति पैदा हो जाती है, तब सभी वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतों में वृद्धि हो जाती है। इस कारण बढ़ी हुई कीमतों को मुद्रास्फीति कहते हैं। देश की अर्थव्यवस्था के लिए अत्यधिक मुद्रास्फीति हानिकारक होती है परंतु 2-3 फीसदी मुद्रास्फीति दर अर्थव्यवस्था के लिए उचित मानी जाती है। भारत देश में मुद्रास्फीति की गणना दो मूल सूची पर आधारित होती है उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) एवं थोक मूल्य सूचकांक (WPI)।

मुद्रास्फीति का कारण ( cause of inflation in hindi )

किसी भी देश में मुद्रास्फीति मुख्यतः दो ही कारणों से होती है :-

    मुद्रास्फीति निवेश के लिए क्या करती है?
  • लागतजनित मुद्रास्फीति निवेश के लिए क्या करती है? कारक (Cost-Push Factor)
  • मांगजनित कारक (Demand-Pull Factor)

लागत जनित कारक

यदि भूमि, श्रम, पूंजी, कच्चा माल आदि के उत्पादन की लागत में वृद्धि होती है तो वस्तुओं की कीमतों में भी बढ़ोतरी होती है, इसको लागत जनित मुद्रास्फीति मुद्रास्फीति निवेश के लिए क्या करती है? कहते हैं।

मांग जनित कारक

यदि देश की मांग के अनुसार वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होती है तो इसे मांग मुद्रास्फीति निवेश के लिए क्या करती है? जनित मुद्रास्फीति कहते हैं।

मुद्रास्फीति निवेशकों के लिए स्थायी जोखिम : साहिल शर्मा

मुद्रास्फीति निवेशकों के लिए स्थायी जोखिम : साहिल शर्मा

संस, राजपुरा : आर्यन्स बिजनेस स्कूल राजपुरा ने बैंकिग कौशल अपने पैसे के साथ कैसे सुरक्षित और स्मार्ट रहे विषय पर सेमिनार का आयोजन किया। साहिल शर्मा, दिशा ट्रस्ट फाउंडेशन और सुशांत, आइसीआइसीआइ प्रूडेंशियल लाइफ इंश्योरेंस इस अवसर पर वक्ता थे। एमबीए, बीबीए, बी.कॉम, बीए और लॉ के विद्यार्थियों ने इस सेमिनार में भाग लिया। इस सत्र का मुख्य उद्देश्य वित्तीय साक्षरता के बारे में विद्यार्थियों को जागरूक करना था। साहिल शर्मा ने विद्यार्थियों को ऐसी योजनाओं से दूर रहने के लिए कहा, जो असाधारण रिटर्न ऑफर का वादा करती है। उन्होंने कहा कि देश में विभिन्न स्तरों पर श्रृंखला विपणन योजनाएं संचालित होती हैं, जो देश के गरीब लोगों को धोखा भी देती हैं। उन्होंने विद्यार्थियों को बैंक और बीमा कंपनियों द्वारा चलाई जा रही विभिन्न निवेश योजनाओं के बारे में सलाह दी। उन्होंने निवेशकों के लिए चार चरण की प्रक्रिया और पांच प्रमुख नियोजन अवधारणाओं का प्रदर्शन किया। उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति निवेशकों के लिए स्थायी जोखिम है और इससे बचना मुश्किल है। मुद्रास्फीति पर काबू पाने का एकमात्र तरीका स्मार्ट निवेश है। धन को सुरक्षित रखने के लिए विद्यार्थियों को बहुत से सुझाव दिए गए।

Inflation: महंगाई की ऊंची दर के लिए कौन है जिम्मेदार? एमपीसी मेंबर ने बताई पूरी बात, कहा- बहुत है दबाव

Inflation: उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित खुदरा मुद्रास्फीति जनवरी 2022 से छह फीसदी से ऊपर बनी हुई है, सितंबर में यह 7.41 फीसदी थी.

Inflation: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) के सदस्य शशांक भिड़े ने कहा कि बीती तीन तिमाहियों से मुद्रास्फीति की दर ऊंची बनी हुई है. इसकी वजह (cause of Inflation) कीमतों पर बाहरी दबाव का होना है. उन्होंने कहा कि इससे निपटने के लिए कोर्डिनेटेड पॉलिसी एफर्ट (समन्वित नीतिगत कोशिशों) की जरूरत होगी. भाषा की खबर के मुताबिक, भिड़े ने कहा कि मुद्रास्फीतिक दबाव बहुत ज्यादा है और यह भारत की मुद्रास्फीति से निपटने की रूपरेखा के लिए निश्चित ही एक परीक्षा है.

दूसरी तिमाही में महंगाई तेज रही

खबर के मुताबिक, भिड़े ने कहा कि साल 2022-23 की दूसरी तिमाही में उच्च मुद्रास्फीति रही, इससे पहले दो तिमाही में भी मुद्रास्फीति ऊंचे लेवल पर थी. ईंधन और खाद्य वस्तुओं के ऊंचे दाम और दूसरे क्षेत्रों पर इसके असर ने मुद्रास्फीति की दर को ज्यादा बना रखा है. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित खुदरा मुद्रास्फीति जनवरी 2022 से छह फीसदी से ऊपर बनी हुई है, सितंबर में यह 7.41 फीसदी थी. मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) आरबीआई की द्विमासिक मौद्रिक नीति पर फैसला लेते वक्त खुदरा मुद्रास्फीति (Inflation) पर गौर करती है.

कदम मुद्रास्फीति निवेश के लिए क्या करती है? उठाना जरूरी

भिड़े ने कहा कि इस स्थिति की वजह बाहरी मूल्य की चोट है और बाकी की अर्थव्यवस्था पर इसके असर को सीमित करने के लिए कदम उठाना जरूरी है. इन मुद्दों से निपटने के लिए समन्वित नीतिगत प्रयासों, मुद्रास्फीति निवेश के लिए क्या करती है? मौद्रिक नीति और दूसरे आर्थिक नीतियों की जरूरत होगी. उन्होंने कहा कि आरबीआई (RBI) की मौद्रिक सख्ती का मकसद मुद्रास्फीतिक मुद्रास्फीति निवेश के लिए क्या करती है? दबावों को कम करना होता है क्योंकि मुद्रास्फीति का ऊंचे स्तर पर बने रहने का खपत और निवेश मांग पर प्रतिकूल असर पड़ता है.

एमपीसी की होगी स्पेशल मीटिंग

रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति(MPC) की 3 नवंबर को विशेष बैठक होने जा रही है. दरअसल आरबीआई को सरकार को यह रिपोर्ट देनी है कि वह जनवरी से मुद्रास्फीति निवेश के लिए क्या करती है? लगातार तीन तिमाहियों से खुदरा मुद्रास्फीति (cause of Inflation) को छह फीसदी के लक्ष्य से नीचे रखने में क्यों विफल रहा है. आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास की अध्यक्षता में छह सदस्यीय एमपीसी यह रिपोर्ट तैयार करेगी, जिसमें मुद्रास्फीति के लक्ष्य को पाने में असफल होने के कारण बताए जाएंगे. इसके अलावा यह भी बताया जाएगा कि देश में दामों में नरमी लाने के लिए केंद्रीय बैंक ने क्या उपाय किए हैं. भारत की मौजूदा व्यापक आर्थिक स्थिति के बारे में भिड़े ने कहा कि जोखिम अनिश्चित वैश्विक माहौल से आता है, हालांकि चालू वित्त वर्ष में जीडीपी वृद्धि करीब सात फीसदी रहने का अनुमान है.इको

नीतियों के लिए नुकसानदेह राजनीति

अर्थशास्त्र के प्रोफेसर भले ही इस विषय को तकनीकी और जटिल बनाने की तमाम कोशिश करते हों, लेकिन वास्तव में यह बेहद आसान है. आर्थिक सिद्धांतों को लागू करने में जटिलताओं के बजाए राजनीति और मानव मनोविज्ञान का रोल अहम होता है.

बिल एमोट

  • नई दिल्‍ली,
  • 17 मार्च 2012,
  • (अपडेटेड 17 मार्च 2012, 9:21 PM IST)

अर्थशास्त्र के प्रोफेसर भले ही इस विषय को तकनीकी और जटिल बनाने की तमाम कोशिश करते हों, लेकिन वास्तव में यह बेहद आसान है. आर्थिक सिद्धांतों को लागू करने में जटिलताओं के बजाए राजनीति और मानव मनोविज्ञान का रोल अहम होता है. भारत की वर्तमान आर्थिक समस्याओं पर विचार करने से पहले इस पृष्ठभूमि को समझना बेहद जरूरी है. भारत की ग्रोथ रेट फिर से 90 के दशक के आखिरी दौर के स्तर यानी 6-7 फीसदी सालाना पर क्यों पहुंच गई है? आर्थिक मोर्चे पर यह मुल्क भारतीय और विदेशी विशेषज्ञों की सलाह पर अमल करने में सफल नहीं रहा है.

यह मुल्क इन सलाहों पर कदम उठाने में क्यों पिछड़ रहा है? अगर इन बातों पर अमल कर लिया जाए तो सालाना विकास के मामले में भारत चीन को पछाड़कर उभरते हुए मुल्कों का आर्थिक सरताज बन सकता है. इन सवालों के जवाब एकमात्र आर्थिक संकेतक में मौजूद हैं और यह है महंगाई दर. मुद्रास्फीति की ऊंची दर कॉरपोरेट निवेश के आड़े आती है और इससे परिवारों के खर्च करने की क्षमता घटती है. दरअसल, कॉरपोरेट फंड की लागत मुद्रास्फीति निवेश के लिए क्या करती है? बढ़ाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक की ब्याज दरों में बढ़ोतरी भी आखिरकार भविष्य में मुद्रास्फीति बढ़ाने का अंदेशा पैदा करती है.

अगर भारत की मुद्रास्फीति दर 15 फीसदी से आगे जाने की दिशा में बढ़ती है (जैसा कारोबारी साल 2009-10 में देखने को मिला था) तो यह मुल्क कभी भी दहाई विकास दर का लक्ष्य हासिल नहीं कर पाएगा. हालांकि, आप कह सकते हैं कि यह बाहरी कारकों से प्रभावित है. इस दौरान चीन समेत कई मुल्क ऊंची मुद्रास्फीति की समस्या से जूझ रहे थे. ये बातें सही हैं, लेकिन जरा चीन की मुद्रास्फीति पर गौर फरमाइएः चीन की मुद्रास्फीति महज 6 फीसदी से थोड़ा ऊपर थी और अब यह 4 फीसदी से नीचे पहुंच चुकी है. दूसरी तरफ, भारत सोचता है कि इसकी मुद्रास्फीति दर 8 फीसदी से नीचे पहुंच चुकी है और इसके मद्देनजर मौद्रिक नीति में ढील दिए जाने के लिए आरबीआइ पर चौतरफा दबाव डाला जा रहा है. मुद्रास्फीति के आंकड़ों पर गौर फरमाने का मतलब यह है कि उदारीकरण और लचीलेपन के मामले में भारतीय अर्थव्यवस्था चीन के मुकाबले पीछे है.

भारत में मुद्रास्फीति इसलिए ज्‍यादा है, क्योंकि राजनैतिक वजहों से भारतीय रिजर्व बैंक जल्द से जल्द ठोस कदम उठाने में सक्षम नहीं है. इसके अलावा, भारतीय अर्थव्यवस्था का आपूर्ति पक्ष काफी सख्त है. सैद्धांतिक नजरिए से लचीली अर्थव्यवस्था में ऊंची कीमतों से सप्लाई में इजाफा होना चाहिए, भारतीय अर्थव्यवस्था इस कैटेगरी में नहीं शामिल है. भारतीय अर्थव्यवस्था लचीली क्यों नहीं है? सरकार ने उदारीकरण और बाजार को खोलने के मसले पर हथियार डाल दिए हैं. आर्थिक मुद्रास्फीति निवेश के लिए क्या करती है? सुधारों से जुड़े नियम, टैक्स सिस्टम में सुधार और बाकी बाधाएं भारत को आकर्षक बाजार बनाने में बाधक हैं और इन मर्जों के इलाज की जरूरत है और इन्हें जल्द दूर किया जाना चाहिए.

रिटेल मसले पर चल रही राजनैतिक खींचतान इस समस्या को बेहतर तरीके से बयां करती है. कोई एक अकेला उदारीकरण सभी चीजों का इलाज नहीं होगा. हालांकि, कीमतों में कमी, बुनियादी ढांचे में निवेश को बढ़ावा और ग्रामीण भारत की आमदनी बढ़ाने की दिशा में किए जा रहे काम को तेज किया जाना मांग पक्ष के लिए फायदेमंद होगा. राजनीति और भ्रष्टाचार ने इन चीजों को काफी नुकसान पहुंचाया है और आखिरकार कानून ने मोबाइल टेलीकॉम लाइसेंस की धज्जियां उड़ा दीं. बिना सिर पैर के फैसले के तहत पहले कपास निर्यात पर पाबंदी लगाई गई और कुछ दिनों के बाद ही यह प्रतिबंध उठा लिया गया. अगर आप एक कंपनी होते (भारतीय या विदेशी कोई भी) तो क्या ऐसे मुल्क में निवेश करना चाहते जहां राजनैतिक, नीतिगत मसलों और मुद्रास्फीति पर भारी अनिश्चितता का आलम हो. जाहिर है बिल्कुल नहीं, जब तक इस माहौल में बुनियादी बदलाव की सूरत न बने.

RBI: मुद्रास्फीति चार प्रतिशत के करीब रोकने की जिम्मेदारी सही

मुद्रास्फीति के लिए तय लचीले लक्ष्य की समीक्षा का समय नजदीक आ रहा है। ऐसे में रिजर्व बैंक ने शुक्रवार को कहा है कि मुद्रास्फीति का मौजूदा चार प्रतिशत का लक्ष्य अगले पांच साल के लिए उपयुक्त है।.

RBI: मुद्रास्फीति चार प्रतिशत के करीब रोकने की जिम्मेदारी सही

मुद्रास्फीति के लिए तय लचीले लक्ष्य की समीक्षा का समय नजदीक आ रहा है। ऐसे में रिजर्व बैंक ने शुक्रवार को कहा है कि मुद्रास्फीति का मौजूदा चार प्रतिशत का लक्ष्य अगले पांच साल के लिए उपयुक्त है। मुद्रास्फीति के इस लक्ष्य को चार प्रतिशत रखा गया है जिसमें दो प्रतिशत नीचे और दो प्रतिशत ऊपर तक का दायरा तय किया गया है।

देश में मुद्रास्फीति लक्ष्य का दायरा तय करने की व्यवस्था को 2016 में अपनाया गया। इस व्यवस्था मुद्रास्फीति निवेश के लिए क्या करती है? को लेकर 31 मार्च 2021 को इसकी समीक्षा की जानी है। रिजर्व बैंक की मुद्रा और वित्त पर जारी 2020- 21 की रिपोर्ट में कहा गया है, मूल्य स्थिरता के लिए तय की गई मौजूदा आंकड़ागत व्यवस्था जिसमें मुद्रास्फीति को दो प्रतिशत की घटबढ़ के दायरे के साथ चार प्रतिशत पर रखने का लक्ष्य तय किया गया है। रिजर्व बैंक ने कहा है कि रिपोर्ट में यह अध्ययन अक्ट्रबर 2016 से लेकर मार्च 2020 की अवधि का है। इस अवधि के दौरान ही देश में लचीले मुद्रास्फीति लक्ष्य (एफआईटी) व्यवस्था को औपचारि रूप से लागू किया गया। इसमें कोविड- 19 महामारी की अवधि को अलग रखा गया है क्योंकि इस दौरान आंकड़ों का संकलन गड़बड़ा गया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि एफआईटी से पहले मुद्रास्फीति दर नौ प्रतिशत की उच्चस्तर पर थी जो कि एफआईटी आवधि में घटकर 3.8 से लेकर 4.3 प्रतिशत की दायरे में आ गई। इससे यह संकेत मिलता है कि देश में मुद्रास्फीति के लिए चार प्रतिशत उपयुक्त लक्ष्य है। इसमें कहा गया है कि उंचे में छह प्रतिशत मुद्रास्फीति लक्ष्य इसका उचित वहनीय दायरा है जबकि नीचे में दो प्रतिशत से ऊपर का इसका दायरा वास्तविक मुद्रासफीति के इससे नीचे जाने वहनीय स्तर से नीचे जाने को प्रेरित कर सकता है। जबकि दो प्रतिशत से नीचे का दायरा वृद्धि को नुकसान पहुंचा सकता है। इससे यह संकेत मिलता है कि नीचे में मुद्रास्फीति का दो प्रतिशत का दायरा उचित स्तर है। रिपोर्ट में कहा गया है कि एफआईटी की इस अवधि में समूचे मुद्रा बाजार में मौद्रिक प्रसार पूरा और तार्किक तौर पर बेहतर रहा लेकिन बॉंड बाजार में यह पूर्णता से कुछ कम रहा।

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