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गोपनीय नकद चंदे की सीमा तय करने का चुनाव आयोग का प्रस्ताव विचाराधीन है : सरकार
नई दिल्ली/टीम डिजिटल। सरकार ने बृहस्पतिवार को कहा कि व्यक्तिगत गोपनीय राजनीतिक चंदे की वर्तमान 20,000 रुपये की राशि को घटा कर 2000 रुपये तक ही सीमित करने के चुनाव आयोग के प्रस्ताव पर विचार किया जा रहा है। कानून मंत्री किरेन रीजीजू ने राज्यसभा को एक प्रश्न के लिखित्त उत्तर में बताया कि चुनाव आयोग ने निजी गोपनीय राजनीतिक चंदे की राशि घटा कर 2000 रुपये करने का प्रस्ताव दिया है जिस पर विचार किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि वर्तमान में यह राशि 20,000 रुपये है। उनसे पूछा गया कि क्या चुनाव आयोग के प्रस्ताव पर सभी राजनीतिक दलों से विचार-विमर्श किया गया है। इस पर मंत्री ने जवाब दिया ‘‘नहीं।'' कानून मंत्री से यह भी पूछा गया था कि क्या चुनाव आयोग ने नकद राजनीतक चंदे की सीमा 20 प्रतिशत या अधिकतम 20 करोड़ रुपये करने का प्रस्ताव दिया है। रीजीजू ने कहा "प्रस्ताव का अध्ययन किया जा रहा है।"
इस साल सितंबर में, चुनाव आयोग ने काले धन के चुनावी चंदे को समाप्त करने के लिए गोपनीय राजनीतिक चंदे को 20,000 रुपये से घटाकर 2,000 रुपये करने और नकद चंदे को 20 प्रतिशत या अधिकतम 20 करोड़ रुपये करने का प्रस्ताव दिया था। मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) राजीव कुमार ने कानून मंत्री रीजीजू को पत्र लिखकर जनप्रतिनिधित्व (आरपी) अधिनियम में कई संशोधनों की सिफारिश की थी।
आयोग द्वारा दिये गये प्रस्तावों का उद्देश्य राजनीतिक दलों द्वारा चंदा लेने की प्रक्रिया में तथा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने वाले उम्मीदवारों द्वारा किए जाने वाले खर्च में सुधार और पारदर्शिता लाना था।
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परिसीमन आयोग क्या होता है | Delimitation Commission In Hindi
Delimitation Commission In Hindi परिसीमन आयोग क्या होता है: पूरे देश में निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा खीचने के उद्देश्य से राष्ट्रपति एक स्वतंत्र संस्था का गठन करते हैं, जिसे परिसीमन आयोग कहा जाता हैं. यह चुनाव आयोग के साथ मिलकर कार्य करता हैं. परिसीमन आयोग, परिसीमन के वाद, प्रत्येक क्षेत्र की सरंचना को देखकर अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए क्षेत्रों को आरक्षित करता हैं.
Delimitation Commission In Hindi परिसीमन आयोग क्या होता है
परिसीमन आयोग– पूरे देश में निर्वाचित क्षेत्रों की सीमा खीचने के उद्देश्य से राष्ट्रपति द्वारा एक स्वतंत्र संस्था का गठन किया जाता हैं जिसे परिसीमन आयोग कहते हैं.
परिसीमन आयोग के कार्य– परिसीमन आयोग के दो प्रमुख कार्य हैं.
- निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाएं निर्धारित करना- परिसीमन आयोग आम निर्वाचन से पहले पूरे देश में निर्वाचन के क्षेत्रों की सीमाएं निर्धारित करता हैं. इस कार्य को वह चुनाव आयोग के साथ मिलकर करता हैं.
- आरक्षित किये जाने वाले निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण- प्रत्येक राज्य में आरक्षण के लिए निर्वाचन क्षेत्रों का एक कोटा होता हैं जो उस राज्य में अनुसूचित जाति या जनजाति की संख्या के अनुपात में होता हैं. परिसीमन के बाद परिसीमन आयोग प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में जनसंख्या की संरचना को देखता हैं जिन निर्वाचन क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या सबसे ज्यादा होती हैं उसे उनके लिए आरक्षित कर दिया जाता हैं.
परिसीमन का उद्देश्य
अनुसूचित जातियों के मामले में परिसीमन आयोग दो बातों पर ध्यान देता हैं. आयोग उन निर्वाचन क्षेत्रों को चुनता है जिनमें अनुसूचित जातियों का अनुपात ज्यादा होती हैं लेकिन वह इन निर्वाचन क्षेत्रों को राज्य के विभिन्न भागों में फैला भी देता हैं ऐसा इसलिए कि अनुसूचित जातियों को पूरे देश में बिखराव समरूप हैं. जब कभी भी परिसीमन का काम होता हैं इन आरक्षित क्षेत्रों में कुछ परिवर्तन कर दिया जाता हैं.
भारतीय लोकतंत्र में राज्यसभा, लोकसभा तथा विधानसभा की सीटों का निर्धारण जनसंख्या के आधार पर किया जाता हैं. हरेक राज्य की जनगणना के आकंड़ो के आधार पर निर्वाचन क्षेत्र विभक्त हो जिससे केंद्र एवं राज्य के बिच निर्वाचन सम्बंधी विवादों को कम से कम किया जा सके साथ ही विभिन्न जातियों व समुदायों को भी उचित प्रतिनिधित्व दिया जा सके, यह कार्य राष्ट्रीय परिसीमन आयोग करता हैं.
पहला परिसीमन आयोग
जब भारत का संविधान बनकर तैयार हुआ तो उसमें लोकसभा के कुल क्षेत्रों के सम्बन्ध में यह कहा गया कि देश भर में 500 तक ही लोकसभा सदस्य होंगे. वर्ष 1952 में संसदीय / विधानसभा क्षेत्रों के व्यवहार्य क्षेत्रीय विभाजन का स्वतंत्र प्रभार एक नई संस्था परिसीमन आयोग को दिया गया. इसके बाद 1952,1963,1973 और 2002 में फिर से आयोग का गठन किया गया. जिन्होंने नवीनतम जनसंख्या आंकड़ों के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों का विभाजन किया गया था.
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परिसीमन की प्रक्रिया
परिसीमन की प्रक्रिया में किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में कोई बड़ा बदलाव नहीं होता है बल्कि आबादी के आधार पर उसकी भौगोलिक सीमाओं में बदलाव किये जाते हैं जैसे किसी बड़े दो निर्वाचन क्षेत्रों के थोड़े थोड़े हिस्से को कम करके नया निर्वाचन क्षेत्र बनाना. इसमें अंतिम एवं नवीनतम जनगणना के आंकड़े आधार बनाएं जाते हैं.
किसी भी राज्य, जिले या निर्वाचन क्षेत्र में इस तरह के बदलावों के लिए परिसीमन आयोग द्वारा एक आधार पत्र तैयार किया जाता है तथा इसे सभी सदस्यों के सम्मुख रखा जाता हैं. प्रस्ताव के विषय में अंतिम निर्णय फैलता है और आयोग केवल आयोग ही करता हैं. इस आधार पत्र पर आयोग के सदस्यों की सकारात्मक, नकारात्मक प्रतिक्रियाओं और सुझावों को सम्बन्धित राज्य के राजपत्र और दो न्यूज पेपर में प्रकाशित करवाया जाता हैं.
साथ ही राज्य या क्षेत्र के लोगों को इस प्रस्ताव पर सुझाव और आपत्तियां भेजने को कहा जाता हैं. इन जन सुझावों पर चर्चा के लिए एक जन सुनवाई का आयोजन किया जाता हैं. आयोग इन सुझावों पर मंथन के बाद अपना अंतिम आदेश जारी करता हैं.
जम्मू-कश्मीर में परिसीमन Jammu Kashmir Delimitation
भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के साथ पूर्वोत्तर के चार राज्यों में परिसीमन की मंजूरी के बाद इन राज्यों के निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का पुनः निर्धारण किये जाने की प्रक्रिया चल रही हैं. जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून, 2019 के तहत केन्द्रशासित प्रदेश जम्मू कश्मीर और लद्दाख के विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों में परिसीमन किया जाएगा.
जम्मू कश्मीर की 107 विधानसभा सीट बढ़कर अब 114 हो जाएगी. जम्मू-कश्मीर में अंतिम परिसीमन वर्ष 1995 में हुआ था. पाक अधिकृत कश्मीर हो छोडकर अब जम्मू कश्मीर में 90 निर्वाचन क्षेत्र हो जाएगे इससे पूर्व इनकी संख्या 83 थी. लोकसभा सीट की बात करें तो जम्मू कश्मीर से 5 एवं लद्दाख से एक लोकसभा सीट हैं.
कैसे काम करता है परिसीमन आयोग
मुख्य चुनाव आयुक्त परिसीमन आयोग के अध्यक्ष होते हैं इन्ही के द्वारा राज्यों के निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का निर्धारण किया जाता हैं. आयोग जनगणना के आधार पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों को आरक्षित करने का काम भी करता हैं. संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार दस वर्षीय जनगणना के पश्चात परिसीमन किया जाना हैं.
इसी आधार पर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन साल 1971 में तथा विधानसभाओं का 2001 में किया गया. वर्ष 2026 में सभी राज्यों में पुनः परिसीमन की प्रक्रिया को दोहराया जाना हैं. परिसीमन की प्रक्रिया में चुनाव आयोग के कर्मचारियों की भूमिका सबसे बढ़कर होती हैं उनके द्वारा जिले, तहसील और गाँव के जनगणना के आंकड़ों के आधार पर सीमांकन किया जाता हैं, इसके अभ्यास में करीब पांच वर्षों का समय लग जाता हैं.
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अब भी कानून करता है कुष्ठ रोगियों के साथ भेदभाव : विधि आयोग
विधि आयोग के अध्यक्ष और दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस एपी शाह ने कानून मंत्री डीवी सदानंद गौडा को दी रिपोर्ट में इसका उल्लेख किया है। रिपोर्ट के मुताबिक, हिंदू मेरिज एक्ट, भारतीय तलाक कानून, मुस्लिम विवाह विच्छेद कानून आदि में जिक्र है। इसके मुताबिक, दंपती में से किसी एक को भी कुष्ठ होने पर इसे तलाक के लिए आधार माना गया है। इसका कारण बीमारी का फैलाव रोकना था लेकिन अब बीमारी लाइलाज नहीं रह गई है। पहली ही खुराक के बाद इसका संक्रमण नहीं फैलता।
ऐसे में इन कानूनों में बदलाव होना चाहिए। इसके अलावा लेपर्स एक्ट 1898 को भी खत्म करने की जरूरत है। इसमें कुष्ठ रोगी के अलगाव को अनिवार्य किया गया है।
फैलता है और आयोग
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उत्तर प्रदेश राज्य सहकारी समिति चुनाव आयोग
भारतीय संविधान के 97 वें संविधान संशोधन अधिनियम 2011 द्वारा जोडें गये अनुच्छेद 19 (ग) में भारत के सभी नागरिकों को संगम या संघ के साथ-साथ सहकारी समिति बनाने का मूल अधिकार अंतः स्थापित किया गया। संविधान के अनुच्छेद 43 (ख) में राज्य सहकारी समिति के ऐच्छिक गठन, स्वायत्त कार्यवाही, फैलता है और आयोग लोकत्रांत्रिक नियंत्रण और व्यावसायिक प्रबन्धन में वृद्धि करने हेतु राज्य सरकार के लिए नीति निदेशक तत्व निर्धारित किये गये है। संविधान में जोडें गये भाग 9(ख) में सहकारी समितियों को संवैधानिक दर्जा प्रदान करते हुए अनुच्छेद 243-यट (2) में व्यवस्था कि गयी कि सहकारी समिति के सभी निर्वाचनों के लिए निर्वाचक नामावली की तैयारी तथा उसके संचालन का अधीक्षण, निदेशन तथा नियंत्रण राज्य विधान मण्डल द्वारा विधि द्वारा यथा उपबन्धित ऐसे प्राधिकारी अथवा फैलता है और आयोग निकाय में निहित होगा, जैसा कि राज्य विधान मण्डल विधि द्वारा निर्वाचन के संचालन के लिए प्रक्रिया और दिशानिर्देश का प्राविधान करें।
भारतीय संविधान के 97वें संषोधन के सुसंगत उत्तर प्रदेष राज्य ने उत्तर प्रदेश अधिनियम संख्या-13/2013 जो दिनांक 15 फरवरी 2013 से प्रभावी है के द्वारा उत्तर प्रदेश सहकारी समिति अधिनियम 1965 में महत्वपूर्ण संशोधन किये गये। आगे पढे.
श्री पी के महान्ति (आई०ए०एस० (से०नि०))
मुख्य निर्वाचन आयुक्त
श्री ए० के० श्रीवास्तव
निर्वाचन आयुक्त
श्री राजमणि पाण्डेय
निर्वाचन आयुक्त
सहकारिता सिद्धांत
- पहला सिद्धांत : स्वैच्छिक और खुली सदस्यता
- दूसरा सिद्धांत : प्रजातांत्रिक सदस्य-नियंत्रण
- तीसरा सिद्धांत : सदस्य की आर्थिक भागीदारी
- चोथा सिद्धांत : स्वायत्तता और स्वतंत्रता
- पांचवा सिद्धांत : शिक्षा,प्रशिक्षण और सूचना
- छठा सिद्धांत : सहकारी समितियों में परस्पर सहयोग
- सातवा सिद्धांत : समुदाय के लिए निष्ठा
समितियों का विवरण
न्यूज़ एवं सन्देश

प्राक्कथन
राज्य सहकारी निर्वाचन आयोग दस विभागों यथा सहकारिता, दुग्ध, गन्ना आवास, उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण, उद्योग, मत्स्य, रेशम, हथकरघा एवं वस्त्रोद्योग एवं खादीएवं ग्रामोद्योग में पंजीकृत सहकारी समितियों के स्वतंत्र एवं निष्पक्ष निर्वाचन सम्पन्न कराने के लिए सदैव तत्पर, प्रयासरत एवं दृढ़संकल्प है। आगे पढ़े.
महत्वपूर्ण लिंक
उ० प्र० राज्य सहकारी समिति चुनाव आयोग
28/35 प्रिंसटन बिज़नस पार्क
प्रथम तल, 16-अशोक मार्ग
लखनऊ (उ०प्र०)-226001
0522-2288713
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नीति आयोग (NITI Aayog) क्या है | नीति आयोग संवैधानिक है या असंवैधानिक | अध्यक्ष कौन होता है
नीति आयोग (NITI Aayog) से संबंधित जानकारी
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमारे देश नें भी अन्य देशों की भांति योजनाएँ बनाकर कार्य करनें की नीति अपनाते हुए वर्ष 1950 में योजना आयोग का गठन किया गया था| देश के फैलता है और आयोग फैलता है और आयोग पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु इसके पहले अध्यक्ष थे। योजना आयोग द्वारा अनेक पंचवर्षीय तथा एकवर्षीय योजनाओं का संचालन काफी लंबे समय तक किया जाता रहा, परन्तु बाद में योजना आयोग पर अनेक प्रकार के आरोप लगनें लगे और कई बार यह विवादों का केंद्र भी रही।
ऐसे में 30 वर्ष बाद पूर्ण बहुमत से भाजपा सरकार केंद्र की सत्ता में लौटी और 1 जनवरी, 2015 को योजना आयोग के स्थान पर केंद्रीय मंत्रिमंडल के फैलता है और आयोग एक संकल्प पर नीति आयोग का गठन किया गया। हालाँकि नीति आयोग भी योजना आयोग की तरह एक गैर संवैधानिक निकाय है| नीति आयोग (NITI Aayog) क्या है, नीति आयोग संवैधानिक है या असंवैधानिक और इसका अध्यक्ष कौन होता है? इसके बारें में आपको विस्तार से जानकारी दे रहे है|
नीति का फुल फार्म (Full Form Of NITI)
नीति आयोग का अंग्रेजी में फुल फार्म National Institute for Transforming India (नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया) है, और हिंदी में इसे राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्थान कहते है| नीति आयोग का गठन 1 जनवरी, 2015 को किया गया था|
नीति आयोग क्या है (What Is NITI Aayog)
नीति आयोग, योजना आयोग का ही बदला हुआ नाम है। वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नें 15 अगस्त के दिन लाल किले से भाषण देते समय नीति आयोग की घोषणा की थी| इस आयोग का नाम बदलनें के साथ इसकी कार्यप्रणाली में एक बड़े स्तर पर बदलाव किया गया है। नीति आयोग को योजना आयोग की तरह वित्तीय अधिकार नहीं दिए गये है, यह आयोग सरकार के लिए सिफ एक थिंक टैंक अर्थात प्रबुद्ध मंडल की भांति कार्य करेगी| इसकी भूमिका सिर्फ सुझाव प्रदान करनें तक ही सीमित है| नीति आयोग के गठन का मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के विभिन्न मुद्दों पर सुझाव देना है| नीति आयोग का मुख्यालय दिल्ली है|
नीति आयोग के फैलता है और आयोग कार्य और उद्देश्य (Functions and Objectives of NITI Aayog)
- नीति आयोग का पहला कार्य सामाजिक एवं आर्थिक मुद्दों पर सरकार को अपना सुझाव देना है, ताकि सरकार ऐसी योजनाओं का निर्माण कर सके जिससे जनमानस को प्रत्यक्ष रूप से लाभ मिल सके|
- राष्ट्र स्तर पर महत्वपूर्ण उद्देश्यों को राज्यों की सक्रिय भागीदारी के साथ राष्ट्रीय विकास प्राथमिकताओं, क्षेत्रों तथा रणनीतियों का एक साझा दृष्टिकोण विकसित करना|
- ग्रामीण स्तर पर विश्वसनीय योजनायें तैयार करनें के लिए सुझाव के साथ-साथ तंत्र विकसित करना|
- देश में रहनें वाले ऐसे वर्ग जो आर्थिक प्रगति से वंचित, उन पर विशेष रूप से ध्यान देना|
- नीति आयोग के अंतर्गत बनायीं गयी योजनाओं को लंबी अवधि तक चलनें के लिए कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करना तथा उसकी प्रगति पर निगरानी करना|
- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों, प्रैक्टिशनरों तथा अन्य हितधारकों के सहयोगात्मक समुदाय के माध्यम से ज्ञान, नवाचार, उद्यमशीलता सहायक प्रणाली बनाना|
- विकास के एजेंडे के कार्यान्वयन में तेजी लाने के क्रम में अंतर-क्षेत्रीय और अंतर-विभागीय मुद्दों के समाधान के लिए एक मंच प्रदान करना|
- आवश्यक संसाधनों की पहचान करने सहित कार्यक्रमों और उपायों के कार्यान्वयन के सक्रिय मूल्यांकन और सक्रिय निगरानी करना|
- कार्यक्रमों और नीतियों के क्रियान्वयन के लिए प्रौद्योगिकी उन्नयन और क्षमता निर्माण पर विशेष ध्यान देना|
क्षेत्रीय परिषद से सम्बंधित जानकारी (Information Related to Regional Council)
नीति आयोग के अंतर्गत क्षेत्रीय परिषदों का गठन भी किया जाता है। क्षेत्रीय परिषद में किसी एक राज्य या अनेक राज्यों से सम्बंधित मामलों को रखा जाता है| जिसमें सम्बंधित राज्यों के मुख्यमंत्री तथा केंद्र शासित प्रदेशों के उप राज्यपाल शामिल होते हैं। यह क्षेत्रीय परिषद विभिन्न राज्यों से जुड़े मसलों पर विचार और फैसले के लिए होता है। कुल मिलाकर प्रधानमंत्री के निर्देश पर किसी विशेष उद्देश्य को लेकर क्षेत्रीय परिषद् का गठन किया जाता है और इसकी अध्यक्षता नीति आयोग के उपाध्यक्ष द्वारा की जाती है,जिन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त होता है|
नीति आयोग की संरचना (Structure of NITI Aayog)
नीति आयोग के अध्यक्ष प्रधानमंत्री है, इसमें एक उपाध्यक्ष, एक मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) होते है| इनकी नियुक्ति प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है| यह सभी केंद्र में सचिव स्तर के अधिकारी होते है| इसके आलावा आयोग में पूर्णकालिक, अंशकालिक और पदेन सदस्य होते हैं। जिसमें 4 सदस्यों को प्रधानमंत्री स्वयं कैबिनेट से नामित करते हैं। इसके साथ-साथ कुछ आमंत्रित सदस्य भी रखे जाते हैं, यह ऐसे लोग होते है जिन्होनें अपने क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया होता है|
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