सकलडीहा विकासखंड के कंपोजिट विद्यालय नैरना को लेकर अभिभावकों की शिकायत लगातार आ रही थी कि विद्यालय के शिक्षक समय से नहीं आते वहीं बिना बताए कई दिनों तक गायब रहते हैं। कंपोजिट विद्यालय में कुल शिक्षक अनुदेशक मिलाकर दस लोग हैं। वहीं पढ़ने वाले बच्चों की संख्या तीन सौ के पार है। लोगों की शिकायत पर वित्तीय साक्षरता संबंधी सभी कोर्सेज मंगलवार की सुबह साढ़े नौ बजे बीईओ अवधेश राय स्कूल पहुंचे। स्कूल में मात्र एक शिक्षामित्र उपस्थित रही। प्रधानाध्यापक समेत बाकी नौ शिक्षक अनुपस्थित मिले। वहीं पूरे बच्चे भी नहीं पहुंचे थे। जबकि स्कूल खुलने का समय साढ़े आठ बजे का है।
स्कूली स्तर पर ही जोडऩा होगा वित्तीय साक्षरता को
सरकार को तत्काल निवेश, बचत, सेवानिवृत्ति योजना, म्यूचुअल फंड, कॉस्ट ऑफ मनी और रेट ऑफ रिटर्न को स्कूल और कॉलेज स्तर पर छात्रों को सिखाने के लिए पाठ्यक्रम में बदलाव करना चाहिए। वित्तीय साक्षरता हमारे बच्चों को जीवन में सही योजनाएं बनाने में मदद करेगी।
वित्तीय साक्षरता या फाइनेंशियल लिटरेसी, यह शब्द कुछ लोगों के लिए नए हो सकते हैं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से ये दुनियाभर में चर्चा में हैं। गूगल सर्च पर वित्तीय साक्षरता का अर्थ है - धन के सही ढंग से उपयोग को समझने की क्षमता। यानी किसी व्यक्ति में मौजूद कुछ कौशलों और ज्ञान से है, जिनके बल पर वह सोच-समझकर प्रभावशाली निर्णय ले पाता है। विभिन्न देशों में वित्तीय साक्षरता की स्थिति अलग-अलग है। पिछले कुछ अर्से से भारत में भी वित्तीय साक्षरता पर जोर दिया जा रहा है। हालांकि, यह प्रयास ऊंट में मुंह में जीरे के समान ही कहे जा सकते हैं। संसद के मौजूदा शीतकालीन सत्र में भी बेंगलूरु के सांसद ने केंद्र सरकार से वित्तीय साक्षरता को स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने की मांग की है। वित्तीय साक्षरता से व्यक्ति स्वयं को तो लाभ पहुंचाता ही है, पर इससे कहीं न कहीं देश का विकास भी जुड़ा हुआ है।
भारतीयों को दुनियाभर में बचत के लिए जाना जाता है। नोटबंदी के दौरान हमने देखा था कि कैसे हमारी माताओं-बहनों के पास भारी नकदी निकली थी। वर्ष 2019 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार हमारे बैंकों के बचत खातों में 18,830 करोड़ रुपए ऐसे जमा हैं, जिनको क्लेम करने वाला कोई नहीं है। यह धनराशि 10 साल से अधिक वर्षों से यूं ही पड़ी है। मतलब, हम भारतीय धन की बचत तो खूब करते हैं, लेकिन हमसे से अधिकांश में धन के वित्तीय साक्षरता संबंधी सभी कोर्सेज वित्तीय प्रबंधन का अभाव है। आज भी अधिकतर भारतीय ऐसे हैं, जो पैसे, सोना-चांदी और संपत्ति को अपने बुढ़ापे में इस्तेमाल के लिए जमा करते रहते हैं। उनका मत होता है कि पैसा होने से एक तरह की सुरक्षा मन में बनी रहती है, क्योंकि यदि इन पैसों को वह कहीं निवेश या खर्च करेंगे तो पैसा खोने का जोखिम या जरूरत पर पैसे न होने का डर बना रहेगा। इस जोखिम को न उठाने का मुख्य कारण वित्तीय साक्षरता का अभाव है।
अर्थशास्त्र का सामान्य सिद्धांत है कि यदि अपनी पूंजी को तिजोरी में कैद करके रखा जाए, तो वह समय के साथ बढ़ती नहीं, बल्कि लगातार घटती जाती है। यदि हम अपनी पूंजी के सही वित्तीय प्रबंधन को जान पाएंगे, तो यह न केवल हमारे लिए लाभप्रद साबित होगा, बल्कि देश को भी इसका फायदा मिलेगा। हालांकि, भारत के संदर्भ में बात करें तो हमारे देश में आज 75 प्रतिशत लोग साक्षर हैं, लेकिन मात्र 24 प्रतिशत वयस्कों में ही वित्तीय साक्षरता देखी गई है। यानी इतने भारतीय ही अपने पैसों की बचत, निवेश, कर्ज और बजटिंग की सही जानकारी रखते हैं।
वैसे तो बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थाओं के माध्यम से सरकार भी वित्तीय साक्षरता को बढ़ाने में जुटी हुई है। कई निजी संस्थाएं ऑनलाइन प्रशिक्षण दे रही हैं। वित्तीय साक्षरता के कई ऑनलाइन कोर्स तो मुफ्त में उपलब्ध हैं। इंश्योरेंस, सेविंग स्कीम्स, आर.डी., एफ.डी, होम लोन, म्यूचुअल फंड समेत अनेक योजनाओं का बड़े स्तर पर प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया भी समय-समय पर बैंकों को एडवाइजरी जारी करता है।
फिर भी वित्तीय साक्षरता का स्कूल स्तर से ज्ञान देना समय की मांग है। यदि दुनिया की बात करें, तो अमरीका के 21 से ज्यादा स्टेट्स में और ऑस्ट्रेलिया में फाइनेंशियल लिटरेसी को स्कूली पाठ्यक्रम में अनिवार्य किया गया है। रूस में कक्षा दो से 11 तक वित्त प्रबंधन का पाठ पढ़ाया जा रहा है। वित्तीय साक्षरता संबंधी सभी कोर्सेज लेकिन, भारत वित्तीय साक्षरता को स्कूली शिक्षा व्यवस्था में शामिल करने की दिशा में आगे बढ़ता नहीं दिख रहा है। वित्तीय साक्षरता संबंधी सभी कोर्सेज सरकार को तत्काल निवेश, बचत, सेवानिवृत्ति योजना, म्यूचुअल फंड, कॉस्ट ऑफ मनी और रेट ऑफ रिटर्न को स्कूल और कॉलेज स्तर पर छात्रों को सिखाने के लिए पाठ्यक्रम में बदलाव करना चाहिए। वित्तीय साक्षरता हमारे बच्चों को जीवन में सही योजनाएं बनाने में मदद करेगी।
स्कूल में 10 में से नौ शिक्षक गायब मिले
पीडीडीयू नगर। सकलडीहा विकासखंड के कंपोजिट विद्यालय नरैना में मंगलवार को मात्र एक शिक्षामित्र उपस्थित मिले बाकि प्रधानाध्यापक समेत नौ शिक्षक और अनुदेशक विद्यालय से गायब मिले। निरीक्षण के लिए पहुंचे बीईओ अवधेश राय ने सबका एक दिन का वेतन काटने की कार्रवाई की और आगे शिकायत की बात कही।
CHHATTISGARH : 5122 लड़कियों व महिलाओं को शिक्षा व कौशल विकास में मदद – शालू जिन्दल
रायपुर। जाने-माने वित्तीय साक्षरता संबंधी सभी कोर्सेज उद्योगपति नवीन जिन्दल के नेतृत्व वाली कंपनी जिन्दल स्टील एंड पावर (जेएसपी) की सामाजिक सेवा शाखा जेएसपी फाउंडेशन ने महत्वाकांक्षी “यशस्वी” योजना का दायरा बढ़ाते हुए शिक्षा एवं कौशल विकास में सहयोग करने के लिए झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा की वित्तीय साक्षरता संबंधी सभी कोर्सेज आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि की 5122 लड़कियों और महिलाओं का चयन किया है। इस योजना के तहत मेडिकल, इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट, समाज विज्ञान और व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त कर आत्मनिर्भर बनने के सपने देख रहीं कुल 5630 लड़कियों और महिलाओं को आर्थिक मदद दी जा रही है।
जेएसपी फाउंडेशन की चेयरपर्सन शालू जिन्दल ने इस योजना का शुभारंभ करते हुए कल देर शाम 5122 लड़कियों और महिलाओं को छात्रवृत्ति का पत्र प्रदान किया। जिन्दल ने इस अवसर पर कहा कि “समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की अनेक महिलाओं और लड़कियों के लिए गुणवत्ता युक्त शिक्षा और कौशल विकास अभी भी एक बड़ी चुनौती है। यशस्वी योजना उच्च शिक्षा और कौशल विकास के माध्यम से उन्हें सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। हमें खुशी है कि इस योजना के प्रथम चरण की लाभार्थी अनेक बेटियों को प्रशिक्षण के बाद रोजगार मिल गया है। हमें उम्मीद है कि दूसरे चरण में आज जिन्हें छात्रवृत्ति दी गई है, उससे और अधिक महिलाओं और लड़कियों को अपने सपने साकार करने का अवसर मिलेगा।”
इस कार्यक्रम में जेएसपी फाउंडेशन की सलाहकार समिति की सदस्य यशस्विनी जिन्दल भी उपस्थित थीं, जिन्होंने यशस्वी योजना को कार्यरूप देने में अहम भूमिका निभाई। इस अवसर पर उन्होंने छात्रवृत्ति प्राप्त करने वाली महिलाओं और लड़कियों को प्रोत्साहित भी किया।
अपर जनपद न्यायाधीश ने दिए बच्चो के सवालों के जवाब
भोपा: जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के तत्वाधान में जनता इंटर कॉलेज भोपा में विधिक साक्षरता शिविर का आयोजन किया गया। जिसमें छात्रों को बाल संरक्षण कानून एवं बाल अधिकारों की जानकारी दी गई।छात्रों के द्वारा कानून से सम्बंधित प्रश्न भी पूछे गए।
जनता इंटर कालेज भोपा के प्रांगण में गुरुवार को विधिक साक्षरता शिविर कार्यक्रम का शुभारंभ माननीय मुख्य अतिथि अनिल कुमार अपर जनपद न्यायाधीश व सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण मुजफ्फरनगर, संदीप कुमार राठी सदस्य बाल कल्याण समिति,पूनम शर्मा निदेशक चाइल्ड लाइन,पूजा नरुला प्रबंधक वन स्टॉप सेंटर एवं सुशील कुमार सैनी थानाध्यक्ष भोपा द्वारा मां सरस्वती के सम्मुख दीप प्रज्वलित कर किया गया। कार्यक्रम में बाल अधिकारों एवं कानूनों के सम्बन्ध में जानकारी देते हुए मुख्य अतिथि अपर जिला जज अनिल कुमार ने बताया कि विधिक सेवा का किस प्रकार लाभ उठाएं एवं समाज के निम्न स्तर तक कैसे विधिक सेवा के बारे में जन कल्याणकारी योजनाओं के बारे में एवं समाज में बढ़ती हुई कुरीतियों को कैसे रोका जाए उसके बारे में विस्तार से बताया और छात्रों को उनके भविष्य के लिए शिक्षा के क्षेत्र कैसे हम अपना जीवन बनाएं के विषय में विस्तार से जानकारी दी।
स्कूली स्तर पर ही जोडऩा होगा वित्तीय साक्षरता को
सरकार को तत्काल निवेश, बचत, सेवानिवृत्ति योजना, म्यूचुअल फंड, कॉस्ट ऑफ मनी और रेट ऑफ रिटर्न को स्कूल और कॉलेज स्तर पर छात्रों को सिखाने के लिए पाठ्यक्रम में बदलाव करना चाहिए। वित्तीय साक्षरता हमारे बच्चों को जीवन में सही योजनाएं बनाने में मदद करेगी।
वित्तीय साक्षरता या फाइनेंशियल लिटरेसी, यह शब्द कुछ लोगों के लिए नए हो सकते हैं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से ये दुनियाभर में चर्चा में हैं। गूगल सर्च पर वित्तीय साक्षरता का अर्थ है - धन के सही ढंग से उपयोग को समझने की क्षमता। यानी किसी व्यक्ति में मौजूद कुछ कौशलों और ज्ञान से है, जिनके बल पर वह सोच-समझकर प्रभावशाली निर्णय ले पाता है। विभिन्न देशों में वित्तीय साक्षरता की स्थिति अलग-अलग है। पिछले कुछ अर्से से भारत में भी वित्तीय साक्षरता पर जोर दिया जा रहा है। हालांकि, यह प्रयास ऊंट में मुंह में जीरे के समान ही कहे जा सकते हैं। संसद के मौजूदा शीतकालीन सत्र में भी बेंगलूरु के सांसद ने केंद्र सरकार से वित्तीय साक्षरता को स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने की मांग की है। वित्तीय साक्षरता से व्यक्ति स्वयं को तो लाभ पहुंचाता ही है, पर इससे कहीं न कहीं देश का विकास भी जुड़ा हुआ है।
भारतीयों को दुनियाभर में बचत के लिए जाना जाता है। नोटबंदी के दौरान हमने देखा था कि कैसे हमारी माताओं-बहनों के पास भारी नकदी निकली थी। वर्ष 2019 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार हमारे बैंकों के बचत खातों में 18,830 करोड़ रुपए ऐसे जमा हैं, जिनको क्लेम करने वाला कोई नहीं है। यह धनराशि 10 साल से अधिक वर्षों से यूं ही पड़ी है। मतलब, हम भारतीय धन की बचत तो खूब करते हैं, लेकिन हमसे से अधिकांश में धन के वित्तीय प्रबंधन का अभाव वित्तीय साक्षरता संबंधी सभी कोर्सेज है। आज भी अधिकतर भारतीय ऐसे हैं, जो पैसे, सोना-चांदी और संपत्ति को अपने बुढ़ापे में इस्तेमाल के लिए जमा करते रहते हैं। उनका मत होता है कि पैसा होने से एक तरह की सुरक्षा मन में बनी रहती है, क्योंकि यदि इन पैसों को वह कहीं निवेश या खर्च करेंगे तो पैसा खोने का जोखिम या जरूरत पर पैसे न होने का डर बना रहेगा। इस जोखिम को न उठाने का मुख्य कारण वित्तीय साक्षरता का अभाव है।
अर्थशास्त्र का सामान्य सिद्धांत है कि यदि अपनी पूंजी को तिजोरी में कैद करके रखा जाए, तो वह समय के साथ बढ़ती नहीं, बल्कि लगातार घटती जाती है। यदि हम अपनी पूंजी के सही वित्तीय प्रबंधन को जान पाएंगे, तो यह न केवल हमारे लिए लाभप्रद साबित होगा, बल्कि देश को भी इसका फायदा मिलेगा। हालांकि, भारत के संदर्भ वित्तीय साक्षरता संबंधी सभी कोर्सेज में बात करें तो हमारे देश में आज 75 प्रतिशत लोग साक्षर हैं, लेकिन मात्र 24 प्रतिशत वयस्कों में ही वित्तीय साक्षरता देखी गई है। यानी इतने भारतीय ही अपने पैसों की बचत, निवेश, कर्ज और बजटिंग की सही जानकारी वित्तीय साक्षरता संबंधी सभी कोर्सेज रखते हैं।
वैसे तो बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थाओं के माध्यम से सरकार भी वित्तीय साक्षरता को बढ़ाने में जुटी हुई है। कई निजी संस्थाएं ऑनलाइन प्रशिक्षण दे रही हैं। वित्तीय साक्षरता के कई ऑनलाइन कोर्स तो मुफ्त में उपलब्ध हैं। इंश्योरेंस, सेविंग स्कीम्स, आर.डी., एफ.डी, होम लोन, म्यूचुअल फंड समेत अनेक योजनाओं का बड़े स्तर पर प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया भी समय-समय पर बैंकों को एडवाइजरी जारी करता है।
फिर भी वित्तीय साक्षरता का स्कूल स्तर से ज्ञान देना समय की मांग है। यदि दुनिया की बात करें, तो अमरीका के 21 से ज्यादा स्टेट्स में और ऑस्ट्रेलिया में फाइनेंशियल लिटरेसी को स्कूली पाठ्यक्रम में अनिवार्य किया गया है। रूस में कक्षा दो से 11 तक वित्त प्रबंधन का पाठ पढ़ाया जा रहा है। लेकिन, भारत वित्तीय साक्षरता को स्कूली शिक्षा व्यवस्था में शामिल करने की दिशा में आगे बढ़ता नहीं दिख रहा है। सरकार को तत्काल निवेश, वित्तीय साक्षरता संबंधी सभी कोर्सेज बचत, सेवानिवृत्ति योजना, म्यूचुअल फंड, कॉस्ट ऑफ मनी और रेट ऑफ रिटर्न को स्कूल और कॉलेज स्तर पर छात्रों को सिखाने के लिए पाठ्यक्रम में बदलाव करना चाहिए। वित्तीय साक्षरता हमारे बच्चों को जीवन में सही योजनाएं बनाने में मदद करेगी।
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