बैंकिंग सिस्टम में कैश की कमी की मुख्य वजह आरबीआई द्वारा मुद्रास्फीति पर नियंत्रण करने के लिए बैंकों से अतिरिक्त कैश को वापस लेना है.

क्या मुझे ETF में निवेश करना चाहिए?

ETF शेयर बाजार का अनुभव पाने के लिए सबसे कम लागत का ज़रिया है। वे लिक्विडिटी और रियल टाइम सेटलमेंट देते हैं क्योंकि वे एक्सचेंज पर लिस्टेड( सूचीबद्ध) हैं और उनमें शेयरों की तरह कारोबार होता है। ETFs कम जोखिम वाले विकल्प हैं क्योंकि वे आपके कुछ पसंदीदा शेयरों में निवेश करने के बजाय स्टॉक इंडेक्स का अनुकरण करते हैं और उनमें डाइवर्सिफिकेशन होता है।

ETFs ट्रेड करने के आपके पसंदीदा तरीके में फ्लेक्सिबिलिटी देते हैं जैसे कीमत घटने पर बेचना या मार्जिन पर खरीदना। कमोडिटीज़ और अंतर्राष्ट्रीय सिक्युरिटीज़ में निवेश जैसे कई विकल्प ईटीएफ में भी उपलब्ध लिक्विडिटी क्या है? हैं। आप अपनी पोज़ि‍शनकी हेजिंग(बचाने ) के लिए ऑपशन्स और फ़्यूचर्स का इस्तेमाल भी कर सकते हैं जो म्यूचुअल फंड में निवेश करने पर नहीं मिलता है।

हालाँकि, ETFs हर निवेशक के लिए सही नहीं होते हैं। नए निवेशकों के लिए इंडेक्स फंड्स बेहतर विकल्प हैं जो कम रिस्क वाले ऑप्शन को चुनकर लंबी-अवधि के लिए इक्विटी में निवेश करने का फायदा उठाना चाहते हैं। ETFs उन लोगों के लिए भी सही हैं जिनके पास एकमुश्त(लमसम) नगद पैसा है लेकिन अभी तक यह तय नहीं कर पाए हैं कि नकदी का निवेश कैसे किया जाए। वे कुछ समय के लिए ETF में निवेश कर सकते हैं और तब तक कुछ रिटर्न कमा सकते हैं जब तक कि नकदी सही जगह पर इस्तेमाल ना हो जाए। सही ETF का चुनने के लिए ज़्यादातर लिक्विडिटी क्या है? रिटेल निवेशकों के मुकाबले, वित्तीय बाज़ार की अच्छी समझ होना ज़्यादा ज़रूरी होता है। इसलिए, आपके ETF निवेश को संभालने के लिए निवेश में थोड़ी व्यावहारिक कुशलता की भी ज़रूरत होती है।

भारत के बैंकिंग सिस्टम में 40 महीने बाद फिर बढ़ा नकदी संकट, आरबीआई ने उठाया ये कदम

महंगाई पर काबू करने के लिए आरबीआई ने 4 मई 2022 को मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक में सीआरआर बढ़ाने का फैसला किया था. बैंकिंग सिस्टम में मौजूद अतिरिक्त नकदी को कम करने के मकसद से आरबीआई नकद आरक्षित अनुपात में 50 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी कर इसे 4 फीसदी से बढ़ाकर 4.50 फीसदी कर दिया.

बैंकों में नकदी की कमी

नई दिल्ली : भारत में लगातार बढ़ रही महंगाई पर लगाम कसने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की ओर से किए गए सख्त फैसलों के करीब 40 महीनों में पहली बार बैंकिंग सिस्टम में नकदी की कमी हो गई है. आलम यह कि बैंकिंग सिस्टम में नकदी की कमी आने के बाद खुद आरबीआई ने ही मंगलवार 20 सितंबर 2022 को करीब 2.73 अरब डॉलर यानि 21,800 करोड़ रुपये डालने पड़े हैं. मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, मई 2019 के बाद पहली बार बैंकिंग सिस्टम में नकदी की कमी आई है.

बैंकिंग सिस्टम की नकदी में 90,000 करोड़ की कमी

मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, महंगाई पर काबू करने के लिए आरबीआई ने 4 मई 2022 को मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक में नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) बढ़ाने का फैसला किया था. बैंकिंग सिस्टम में मौजूद अतिरिक्त नकदी को कम करने के मकसद से आरबीआई नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में 50 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी कर इसे 4 फीसदी से बढ़ाकर 4.50 फीसदी कर दिया. सीआरआर में बढ़ोतरी का फैसला 21 मई, 2022 से लागू हुआ था. इससे बैंकिंग सिस्टम में मौजूद 90,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त नकदी में कमी आ गई.

आरबीआई ने क्या बढ़ाया सीआरआर

बता दें कि भारत में लगातार बढ़ रही महंगाई पर काबू करने के लिए आरबीआई ने अप्रैल महीने से अब तक नीतिगत ब्याज दर रेपो रेट में करीब 1.40 फीसदी अथवा 140 बेसिस प्वाइंट तक बढ़ोतरी की है. इसके पीछे आरबीआई का तर्क यह था कि बाजार में नकदी लिक्विडिटी क्या है? की अधिकता के कारण भारत में महंगाई बढ़ रही है. उसका कहना है कि जब देश में कर्ज महंगा होगा, तो लोगों के खर्चे में कटौती होगी और बाजार में नकदी के प्रवाह में कमी आएगी. यही कारण है कि बैंकों के पास मौजूदा नकदी को रोकने के लिए आरबीआई ने सीआरआर में 50 बेसिस प्वाइंट बढ़ाने का फैसला किया था.

तरलता समायोजन सुविधा (Liquidity Adjustment Facility) क्या है?

हाल ही में, भारतीय रिज़र्व बैंक ने तरलता प्रबंधन को और अधिक कुशल बनाने के लिए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRB) के लिए तरलता समायोजन लिक्विडिटी क्या है? सुविधा (LAF) का विस्तार करने का निर्णय लिया है। बैंकिंग क्षेत्र सुधारों पर नरसिम्हम समिति की सिफारिशों के आधार पर 1998 में RBI में LAF की शुरुआत की गई थी।

तरलता समायोजन सुविधा क्या है?

दरअसल यह एक मौद्रिक नीति उपकरण है जो बैंकों को पुनर्खरीद समझौते या रेपो के माध्यम से अस्थायी नकदी की कमी को हल करने में सक्षम बनाता है। यह नकदी जुटाने के लिए रिवर्स-रेपो के माध्यम से आरबीआई को ऋण दे सकता है।

अन्य उपकरण

आरबीआई देश में तरलता के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए चार उपकरणों का उपयोग करती है, वे हैं : नकद आरक्षित अनुपात (CRR), तरलता समायोजन सुविधाएं (रेपो दर और रिवर्स रेपो दर सहित), वैधानिक तरलता अनुपात और ओपन मार्केट ऑपरेशन।

तरलता समायोजन सुविधा के मुख्य घटक

तरलता समायोजन सुविधा के दो मुख्य घटक रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट हैं। रेपो दर वह दर है जिस पर बैंक भारतीय रिज़र्व बैंक से पैसा उधार लेते हैं। धनराशि उधार लेते समय, बैंक सरकारी प्रतिभूतियों को संपार्श्विक (collateral) के रूप में रखते हैं। रिवर्स रेपो दर वह दर है जिस पर RBI बैंकों से पैसा उधार लेता है। रिवर्स रेपो प्रणाली से तरलता को अवशोषित करने में मदद मिलती है।

नरसिम्हम समिति

नरसिम्हम समिति ने मूल रूप से बैंकिंग और वित्तीय प्रणालियों के कामकाज में बदलाव की सिफारिश की थी। इस समिति ने निम्नलिखित सिफारिशें कीं थी :

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देश में क्रेडिट ग्रोथ पिछले एक दशक के सबसे ऊंचे स्तर 18 फीसदी पर पहुंच गई है, जबकि डिपॉजिट ग्रोथ काफी पीछे चल रही है.

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बैंकिंग सिस्टम में कैश की कमी की मुख्य वजह आरबीआई द्वारा मुद्रास्फीति पर नियंत्रण करने के लिए बैंकों से अतिरिक्त कैश को वापस लेना है.

SBI Report: देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक SBI ने बैंकिंग सेक्टर में आई कैश लिक्विडिटी की कमी को लेकर अपनी एक रिपोर्ट जारी की है. यह रिपोर्ट एसबीआई के चीफ इकॉनमिस्ट के निर्देशन में तैयार की गई है. इस रिपोर्ट में दावा किया है कि मौजूदा वक्त में अधिकतर बैंक ज्यादा से ज्यादा डिपॉजिट जुटाने और लोन देने के चक्कर में अपने क्रेडिट रिस्क को ठीक से कवर नहीं कर रहे हैं. यानी डिपॉजिट पर जरूरत से ज्यादा ब्याज दे रहे हैं और लोन पर जितना ब्याज लेना चाहिए उतना नहीं रहे.

क्रेडिट ग्रोथ एक दशक के सबसे ऊंचे स्तर पर

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि देश में क्रेडिट ग्रोथ पिछले एक दशक के सबसे ऊंचे स्तर 18 फीसदी पर पहुंच गई है, जबकि डिपॉजिट ग्रोथ काफी पीछे चल रही है. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बैंकिंग सिस्टम में कैश की कमी की मुख्य वजह आरबीआई द्वारा मुद्रास्फीति पर नियंत्रण करने के लिए बैंकों से अतिरिक्त कैश को वापस लेना है. वहीं RBI द्वारा पिछले 10 महीने से रिटेल मुद्रास्फीति के तय सीमा से ऊपर बने रहने की वजह से रेपो रेट में इजाफा किया जा रहा है. पिछले छह महीने में आरबीआई ने रेटो रेट में 1.90 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है.

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रिटेल मुद्रास्फीति को 4% पर रखना है RBI का लक्ष्य

SBI की रिपोर्ट के मुताबिक आरबीआई रिटेल मुद्रास्फीति को 4 प्रतिशत पर रखना चाहता है. ब्याज दर बढ़ने से पहले अप्रैल 2022 के दौरान बैंकिंग सिस्टम में एवरेज नेट ड्यूरेबल लिक्विडिटी 8.3 लाख करोड़ रुपये थी, जो अब घटकर 3 लाख करोड़ रुपये के करीब रह गई है. इसके साथ ही रिपोर्ट में बताया गया कि सरकार ने दिवाली के हफ्ते में कैश बैलेंस का एक बड़ा हिस्सा खर्च कर दिया है, जिसकी वजह से लिक्विडिटी के स्तर में थोड़ा सुधार जरूर हुआ है. इसके साथ ही सरकारी और प्राइवेट सेक्टर की ओर से अपने कर्मचारियों को दिए गए बोनस से भी लिक्विडिटी बढ़ी है.

मौद्रिक नीति में के लिए होता है LAF इस्तेमाल

एलएएफ मौद्रिक नीति में इस्तेमाल किये जाने वाला एक उपाय है. इसके जरिये रिजर्व बैंक अर्थव्यवस्था में नकदी प्रबंधन के लिये रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट का उपयोग करता है. एसबीआई की चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर सौम्या कांति घोष ने एक रिपोर्ट में कहा कि बैंकों में एक तरफ ब्याज दर बढ़ी है, दूसरी तरफ नकदी को सोच-विचार कर कम किया गया है. लेकिन एक चीज अभी भी नहीं बदली है. वह है कर्ज को लेकर जोखिम का पर्याप्त रूप से प्रबंधन.

कैश में रिकॉर्ड स्तर पर कमी

उन्होंने कहा कि एक तरफ कर्ज की मांग एक दशक के उच्चस्तर पर है, जबकि कैश में रिकॉर्ड स्तर पर कमी हुई है. रिपोर्ट के अनुसार भले ही बैंकिंग सिस्टम में नेट एलएएफ घाटा देखा जा रहा है. हालांकि मार्केट सूत्रों का कहना है कि मुख्य डिपॉजिट की लागत के ऊपर लोन को लेकर जो रिस्क है, उसका ध्यान नहीं रखा गया है.

उदाहरण के लिये एक वर्ष से कम अवधि का कार्यशील पूंजी कर्ज 6% से कम दर पर दिया जा रहा है और यह एक महीने व तीन महीने के ट्रजरी बिल की दर से जुड़ा है, जबकि 10 और 15 वर्ष के कर्ज की लागत 7% से कम है. यहां पर 10 साल की अवधि वाली सरकारी प्रतिभूतियां करीब 7.46% के आसपास की दर पर कारोबार रही हैं. वहीं 91 दिन की अवधि वाले ट्रेजरी बिल 6.44% की दर पर कारोबार कर रहे हैं, जबकि 364 दिन के ट्रेजरी बिल की लागत 6.97% प्रतिशत है.

डिपॉजिट जुटाने की औसत लागत करीब 6.2%

बैंकों में मुख्य डिपॉजिट जुटाने की औसत लागत करीब 6.2% है, जबकि रिवर्स रेपो दर 5.65% है. ऐसे में हैरानी की बात नहीं है कि बैंक वर्तमान में ज्यादा डिपॉजिट जुटाने के लिये ब्याज दर बढ़ाने की होड़ में हैं. चुनिंदा मैच्योरिटी अवधि की डिपॉजिट्स पर ब्याज दर 7.75% तक कर दी गई है. इसके साथ ही बैंक अब 390 दिनों के लिये जमा प्रमाणपत्र यानी सीडी 7.97% की दर पर जुटा रहे हैं, जबकि कुछ बैंक 92 दिनों के लिये सीडी 7.15% पर जुटा रहे हैं.

डिपॉजिट जुटाने और कर्ज देने की होड़

एसबीआई की चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर सौम्या कांति घोष ने कहा कि बैंक ब्याज दरों को बढ़ाकर लिक्विडटी की कमी को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं. कुल सीडी 21 अक्टूबर के समय 2.41 लाख करोड़ रुपये रहा, जो पिछले साल की इस अवधि में 57 हजार करोड़ रुपये था. घोष ने रिपोर्ट में कहा गया है कि बॉन्ड प्रतिफल भी अप्रैल 2022 के बाद 2.55 प्रतिशत बढ़ा है और अक्टूबर 2022 में 6.92 प्रतिशत रहा. रिपोर्ट के अनुसार पॉजिटिव बात ये है कि डिपॉजिट जुटाने और कर्ज देने को लेकर जो होड़ है, वह ‘एएए’ दर्जे वाले कर्जदारों तक सीमित है.

लिक्विडिटी क्या है?

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Q. Which of the following statements correctly describes the economic situation ‘Liquidity Trap’, which was recently in the news-

Q. निम्नलिखित कथनों में से कौन सा हाल में चर्चित रहे आर्थिक स्थिति 'तरलता जाल' का वर्णन सही ढंग से करता है?

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